हेल्लो दोस्तों मेरा नाम अनिल पायल है, रंग बिरंगी लाइटिंग और तरह-तरह की मिठाइयों के बाद जो चीज दिवाली की खुशियों को दोगुना कर देती है वह है पटाखों की धुन | सिर्फ दिवाली ही क्यों जीत जश्न का कोई भी मौका पटाखों के बिना अधूरा ही रहता है फिर चाहे बात शादी ब्याह की हो, क्रिकेट मैच की, फिल्म रिलीज की या चुनाव के नतीजों की | यह तो आपने सुना ही होगा कि दिवाली श्री राम जी के 14 वर्ष का वनवास पूरा कर अयोध्या वापस आने की खुशी में मनाई जाती है| लेकिन क्या आपको पता है कि पटाखों की परंपरा कब कहां क्यों और कैसे शुरू हुई… तो चलिए जानते हैं, पटाखों की कहानी…भले ही बदलते दौर के साथ पटाखों का रंग रूप और आकार बदलता चला गया लेकिन हर दौर में फुलझड़ी और पटाखे खूब चले हैं | पटाखों की इस कहानी में आपको पता चलेगा कि हमारी दिवाली पर धूम मचाने वाले पटाखे चीन, इटली और फ्रांस की सैर करते हुए यहां तक पहुंचे हैं |
पटाखे बनने की कहानी
हजारों साल पुरानी बात है चीन के लोग गांव में आने वाले जंगली जानवरों और बुरी आत्माओं को भगाने के लिए वैंबू यानी बांस को जलाते थे | बांस खोखला होता है और उसमें बीच बीच में गांठे होती हैं जैसे ही यह आग पकड़ता इसकी दो गांठो के बीच के खोखले हिस्से में मौजूद हवा गर्मी से फैलने लगती और एक धमाकेदार आवाज होती इस आवाज से डरकर जानवर भाग जाते थे | आगे चलकर चीन के लोग आतिशबाजी के इस अनोखे तरीके का इस्तेमाल नए साल के मौके पर हर बुरी बला और परेशानी को दूर करने के लिए भी करने लगे | पुरानी कथाओं की माने तो पहला पटाखा बैंबू से होने वाली आतिशबाजी को ही माना जाता है.
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चीन में तो काफी समय तक बैंबू को ही विभिन्न आयोजनों के समय पटाखे की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा | जब बंबू का इस्तेमाल पटाखों की तरह होने लगा तो चीन के रसायन शास्त्रीयो ने कुछ रसायनों को मिलाकर एक ऐसा मिश्रण बनाया जिसके साथ बांस को जलाने पर ज्यादा तेज आवाज आती थी |
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इस प्रकार निर्माण हुआ आधुनिक पटाखे
दरअसल चीन में अनजाने में ही पटाखे के जिस रूप की खोज हुई थी उसे मॉडर्न टच मिला इटली में | ऐसा कहा जाता है कि 13वीं सदी में इटालियन यात्री मार्को पोलो चीन से इसी मिक्सर के कुछ सैंपल अपने साथ ले गए थे | इटली में इस मिक्सचर पर कुछ और प्रयोग किए गए जिसके फलस्वरूप पटाखों के कई प्रकार सामने आए इसके बाद इटली के साथ ही फ्रांस ने भी पटाखे बनाने की इस कला में महारत हासिल कर ली | 1830 तक जिस पटाखों का इस्तेमाल किया जाता था उनसे सिर्फ सफेद और सुनहरे रंग की रोशनी ही दिखाई देती थी इसके बाद इटली में रसायनों का एक ऐसा मिश्रण तैयार किया गया जिनसे तेज आवाज के साथ साथ रंग बिरंगी चिंगारियां भी निकलने लगी|
आज इस्तेमाल होने वाली फुलझड़ी, अनार, चरखी, रॉकेट आदि इन्हीं पटाखों का आधुनिक रूप है | पटाखों का इस्तेमाल बढ़ने के साथ-साथ इसका उद्योग भी जोर शोरों से बढ़ने लगा हमारे देश में सबसे ज्यादा पटाखे तमिलनाडु के शिवकाशी शहर में बनाए जाते हैं | चीन, इटली और फ्रांस में खास अवसरों पर पटाखों का इस्तेमाल पहले से ही किया जाने लगा था | 1486 में इंग्लैंड के राजा हेनरी 7 की शादी का जश्न भी आतिशबाजी के साथ ही मनाया गया था, इंग्लैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय ने तो खासतौर पर सेना के जवानों को पटाखे जलाने का प्रशिक्षण दिया था ताकि युद्ध जीतने का जश्न पटाखे चलाकर मनाया जा सके इसके अलावा जुलाई 1777 में अमेरिका के आजाद होने की खुशी में खुब जश्न मनाया गया इस जश्न में भी जमकर आतिशबाजी की गई थी|
अमेरिका के पहले राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंगटन का स्वागत भी पटाखे जला कर ही किया गया था | धीरे-धीरे पटाखे हर रस्म त्यौहार और जश्न का खास हिस्सा बनते चले गए भारत में खासतौर पर दिवाली के त्यौहार पर पटाखे जलाने की परंपरा है, बच्चे जवान और बूढ़े सभी इस मौके पर पटाखे जलाते हैं |
(Stethoscope) एक डॉक्टर की शर्म की वजह से हुवा यह महान आविष्कार!
दोस्तों आप पटाखो का इस्तेमाल कैसे करते है? अपने महत्वपूर्ण विचार हमरे साथ कमेंट में शेयर करे ताकि सब लोग एक दुसरे के विचारो को जान सके|
दोस्तों आर्टिकल लिखने के लिए मुझे काफी मेहनत करनी पड़ती है और मेरा काफी समय लग जाता है इसलिए में आपसे एक लाइक और शेयर की उम्मीद करता हूं.. धन्यवाद