आसानी से लोन मिलने के कारण आज हर कोई अपना खुद का घर खरीदने की प्लानिग तो कर लेता है इस सूरत में तो लोग डांउन पेमेंट के लिए तो अपनी सेविंग में से तो एक मुस्त राशि जुटा लेते है लेकिन वो बाकि के पैसो के लिए अपनी कैपेसिटी के मुताबिक बैंक का सहारा लेते है| ऐसे में जरा सोचिए की काफी मसकत के बाद जब आप अपना घर पा लेते है और उसके बाद अगर आप EMI न चुकाने की सिचवेशन में आ जाते है तो क्या होगा – मान लीजिए की घर का मालिकाना हक़ पा लेने के बाद आपकी नौकरी चली जाये तो आप क्या करेगे? ये आपके लिए एक बेहद ही सीरियस सिचवेशन होगी. ऐसे में आपकी फाइनेंसियल कंडीसन तो ख़राब होगी ही साथ ही आप लोन का भुगतान न कर पाने के सिचवेशन में भी आ चुके होगे| तो ऐसे में आपके लिए यह जान लेना बहुत जरूरी है की अगर आप ऐसी सिचवेशन में आ जाते है तो आपको क्या करना चाहिए…
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(1) लोन के भुगतान में देरी होने पर क्या होता है?
अगर आप बैंक से लोन लेते है और उसके बाद आप उसकी EMI पे करने में लेट कर देते है तो फिर बैंक आपके साथ क्या कर सकता है | भारतीय रिजर्व बैंक के मुताबिक अगर लगातार 90 दिनों तक लोन के सम्बध में किसी भी राशि या EMI का भुगतान नही किया जाता है तो इसे NON PERFORMING ASSET (NPA) मान लिया जाता है तो ऐसी सिचवेशन में बैंक अकाउंट होल्डर को एक नोटिस भेजता है जिसमे कहा जाता है की अकाउंट होल्डर बैंक की कुल राशि का भुगतान एक बार में ही कर दे और अगर वो ऐसा नही करता है यानि अगर अकाउंट होल्डर लोन का भुगतान नही करता है तो बैंक अकाउंट होल्डर को कानूनी कार्यवाही करने की लीगल एक्शन लेने की धमकी भी दे सकता है |
(2) लोन न चुकाने पर क्या होता है?
लोन न चूका पाने की सूरत में सबसे पहले बैंक आपको एक नोटिस भेजती है| पहला लीगल नोटिस भेजे जाने के दो महीने के बाद यानि लोन का भुगतान न करने के लगभग पांच महीने के बाद बैंक आपको दूसरा लीगल नोटिस भेजता है| बैंक इस नोटिस के जरिये आपको बताता है की आपकी प्रोपर्टी की कुल कीमत कितनी होगी और उसको नीलामी के लिए कितनी कीमत पर रखा गया है और इसमें नीलामी की दिनांक भी निश्चित होती है जो की आमतोर पर दूसरा लीगल नोटिस भेजे जाने के एक महीने के बाद की होती है |
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आमतोर पर हाउसिंग लोन के ज्यादातर मामले NPA से जुड़े हुए नही होते है | इसलिए बैंक ज्यादातर हाउसिंग लोन के मामलो में इमिजेटली कार्यवाही नही करते है बल्कि वो अकाउंट होल्डर पर दबाव बनाते रहते है | लेकिन इन सबके बावजूद भी अगर अकाउंट होल्डर कोई प्रतिक्रिया नही देता है तो बैंक कानूनी कार्यवाही कर सकते है |
चलिए अब हम बात करते है अगर आप बैंक से लोन लेने के बाद उसको डिफाल्ट कर देते है तो बैंक आपके साथ क्या-क्या कर सकते है |
(3) बैंक क्या कर सकते है?
कर्ज देने वाली एंजेसियों की डिफेन्स के लिए पार्लियामेंट ने वर्ष 2002 में एक कानून पास किया था जिसे सरफेसी (SARFAESI) एक्ट कहा गया है | इसके मुताबिक अगर होम लोन का भुगतान नही किया जाता है तो बैंक आपकी सम्पति को जब्त कर सकता है और उसको नीलाम भी कर सकता है | हालांकि बैंक इस कार्यवाही को अंजाम देने से पहले जो दुसरे विकल्प होते है उन पर भी गौर करते है. बैंको का मुख्य काम अटके हुए लोन की राशि को वापस पाना होता है | हालाँकि कुछ सरकम टान्सेस में बैंक अंतिम विकल्प यानि स्टीम कडीशन को अपनाते है क्योकि बैंको का प्राइमरी काम होता है लोन देना और उसको एक फिक्स समय पिरियड के बाद वापस पाना |
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अब बात करते है प्रोपर्टी नीलाम होने के बाद क्या होता है?
(4) नीलामी के बाद क्या होता है?
कर्जदार की प्रोपर्टी नीलाम करने के बाद भी बैंको को शुकून नही मिलता है| अगर बैंक आपका घर सीज करके उसको नीलामी के जरिये बेच देता है तो उस सुरत में नीलामी में जो अमाउंट मिला है अगर वो अमाउंट आपके बैंक कर्ज से ज्यादा है तो बैंक बाकि का अमाउंट आपके अकाउंट में ट्रान्सफर कर देते है | लेकिन अगर इसका उल्टा होता है की नीलामी में जो अमाउंट मिला है वो आपके कर्ज से कम है तो जो अमाउंट बाकि रह गया है वो आपको बैंक को पे करना होता है. इस सिलसिले में जब कोई बैंक से होम लोन लेता है और उसके बाद उसको डिफाल्ट कर देता या EMI पे नही करता है तो बैंक सबसे पहले होम लोन के गारंटर को वार्निग नोटिस जारी करता है |
जब बैंक को उस नोटिस का जवाब नही मिलता है तो बैंक सिक्योरोटाइट एक्ट के तहत उनकी प्रोपर्टी को जब्त कर लेता है और जब्त करने के बाद उसको नीलाम कर देता है तो नीलाम करने के बाद जो अमाउंट आता है बैंक उस अमाउंट से उस लोन की भरपाई करता है | अगर लोन की भरपाई करने के बाद अमाउंट बच जाता है तो बैंक उस अमाउंट को कर्जदार के यानि लोन लेने वाले के अकाउंट में डिपोजिट कर देता है और अगर नीलामी के बाद अमाउंट कम आता है जिससे लोन का पूरा भुगतान नही हो पाता है तो फिर लोन लेने वाले को बाकि का भुगतान करना होता है| लेकिन अगर कोई व्यक्ति पर्सनल लोन लेता है और उसको डिफाल्ट कर देता है या उसकी EMI पे नही करता है | तो इस मामले में बैंक उसकी प्रोपर्टी को जब्त नही करता बल्कि उसकी सिविल कम्प्लेन कर देता है और उस सिविल कम्प्लेन का इफेक्ट यह होता है की वो व्यक्ति जिन्दगी में कभी भी इंडिया के किसी भी बैंक से लोन लेने के काबिल नही रहता है | मतलब इंडिया का कोई भी बैंक उसको जिन्दगी में कभी भी लोन नही देगा |
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पर्सनल लोन का अमाउंट क्योकि बहुत छोटा होता है इसलिए इसमें सिविल कम्प्लेन से काम चल जाता है | यहाँ पर आपको यह भी जान लेना चाहिए की लोन दी तरह के होते है
(1) सिक्योर लोन (2) अनसिक्योर लोन
सिक्योर लोन की कैटेगरी में होम लोन , गोल्ड लोन , मोरगेज लोन ,म्यूचल फंड लोन , ओटो लोन आते है | इसके अलावा अनसिक्योर लोन की कैटेगरी में पर्सनल लोन , एज्युकेशन लोन आते है | लेकिन जो सिक्योर लोन है अगर उसको कोई डिफाल्ट कर देता है या उसकी EMI पे नही करता है तो बैंक उसकी प्रोपर्टी जब्त कर लेता है और उसको नीलाम कर देता है | और जो अनसिक्योर लोन है अगर उसको कोई डिफाल्ट कर देता है या उसकी EMI पे नही करता है तो बैंक सिविल में एक कम्प्लेन कर देता है |
आज हमने यह जाना की अगर आप किसी भी बैंक से लोन लेते है और उसको डिफाल्ट कर देते है या उसकी EMI पे नही कर पाते है तो बैंक आपके साथ क्या-क्या कर सकता है |
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Credit : Ishan LLB