द्वितीय विश्वयुद्ध
दोस्तों बात है 1939 से 1945 तक की जिसे “द्वितीय विश्वयुद्ध “ के नाम से भी जाना जाता है. बेशक द्वितीय विश्व युद्ध ने बहुत कुछ बदल दिया था. वैसे तो द्वितीय विश्वयुद्ध आने या सेकंड वर्ल्ड वॉर आरंभ करने का सारा श्रेय ”हिटलर” को ही जाता है | हिटलर ने पूरे विश्व पर आर्यंस की हुकूमत करने की अभिलाषा ने हीं सेकंड वर्ल्ड वॉर शुरू किया था. हालांकि युद्ध की आड़ में हिटलर ने जो अपराध किए, वह मानवता के खिलाफ थे. 7 लाख यहूदियों का कत्ल अमानवता ही है. पर दोस्तों सच यह भी है, कि अगर हिटलर ना होता और अगर सेकंड वर्ल्ड वॉर ना शुरू हुआ, होता तो शायद भारत की आजादी में कम से कम 30 साल या इससे भी ज्यादा समय लग सकता था |
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अंग्रेजों की अर्थव्यवस्था को हिलाकर रख दिया
अंग्रेजों का अगर किसी ने नुकसान किया तो सिर्फ सुभाष चंद्र बोस और हिटलर ने किया. हिटलर के कारण ही सेकंड वर्ल्ड वॉर खत्म होने के 2 साल के अंदर ही अंग्रेज भारत छोड़कर चले गए | इसीलिए नहीं कि अंग्रेज सही में भारत को आजादी देना चाहते थे , बल्कि उन्हें मजबूरन ऐसा करना पड़ा क्योंकि सेकंड वर्ल्ड वॉर ने ब्रिटिश साम्राज्य की ‘अर्थव्यवस्था’ की कमर तोड़ कर रख दी थी | 1945 के बाद ब्रिटेन खुद अमेरिका के कर्ज में आ गया था | ब्रिटेन एक महाशक्ति के रूप में अपने साख पूरी तरीके से खो चुका था| .नेताजी की आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजों का काफी नुकसान किया पर हिटलर ने पूरे ब्रिटेन और फ्रांस की कमर तोड़ दी. उसने इतना बुरा मारा कि अंग्रेजों की पूरी अर्थव्यवस्था खराब हो गई | अंग्रेज ना सेना रखने और ना ही उनके पास इतने पैसे थे कि वह दूसरे देशों में अपना शासन कायम रख सके | जिसका नतीजा यह हुआ कि अग्रेजो ने ना सिर्फ भारत को छोड़ा , जॉर्डन, श्रीलंका, मलेशिया, म्यानमार सब छोड़ दिया |
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फ्रांस ने भी इसी कारण से कंबोडिया और वियतनाम को आजाद कर दिया | ठीक इसी प्रकार से नीदरलैंड को भी इंडोनेशिया को आजाद करना पड़ा . सोचिए अगर हिटलर ना होता तो ना ही कोई विश्वयुद्ध होता , ना ही हमें कोई आजादी मिलती और अंग्रेज भारत को ऐसे ही लूटते रहते | दोस्तों यह बहुत कड़वा सच है कि अंग्रेजों का भारत में सबसे अच्छा दोस्त था ‘ मोहनदास करमचंद गांधी ‘ अंग्रेजों ने भारतीयों का जितना खून चूसना था . वह 1910 तक ही चूस चुके थे. लेकिन उसके बाद वह भारत में सिर्फ इसलिए रूके थे ताकि उन्हें विश्व युद्ध लड़ने के लिए सैनिक यहां से मिलते रहे| गांधीजी के कारण अंग्रेज अपने सेनाओं में भारतीयों को भर्ती करा पाए. गांधी जी ने खुलेआम भारतीय युवाओं को अंग्रेज का साथ देने के लिए बोला था|
सुभाषबाबू की कार्य पद्धति
“ तुम मुझे खून दो और मैं तुम्हें आजादी दूंगा” खून भी एक दो बूंद नहीं इतना कि खून का सारा महासागर तैयार हो जाए और महासागर में मैं ब्रिटिश साम्राज्य को डुबोकर मार डालूंगा | यह नारा दिया था नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 1938 में गांधी जी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सुभाषबाबू को चुना था, मगर गांधी जी को सुभाषबाबू की कार्य पद्धति पसंद नहीं आई ,इस दौरान यूरोप में द्वितीय विश्व युद्ध के बादल छा गए | सुभाष बाबू चाहते थे कि इंग्लैंड कि इस कठिनाई का लाभ उठाकर भारत का स्वतंत्रता संग्राम अधिक तीव्र किया जाए , हालांकि गांधीजी उनके इस विचार से सहमत नहीं थे |
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सुभाष चंद्र बोस ने यूरोप में रहते हुए यूरोप के राजनीतिक हलचल का गहन अध्ययन किया था | उसके बाद भारत को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से आजाद हिंद फौज का गठन किया था. यूरोप में इटली के नेता मुसोलिन से मिले बर्लिन में जर्मनी के तत्कालीन तानाशाह ‘हिटलर ‘ से मुलाकात की | भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए जर्मनी व जापान से सहायता मांगी . सेकंड वर्ल्ड वॉर के दौरान जापानी नेतृत्व ने एक योजना को मंजूरी दी थी . जिसका मकसद था अमेरिका और ब्रिटेन के साथ चल रही लड़ाई को तेजी से अपने पक्ष में कर एक नतीजे तक पहुंचा देना और भारत को अंग्रेजी राज से मुक्त करवाना |
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जापान की संसद में भाषण
उस समय जापान के प्रधानमंत्री ने जापान की संसद में भाषण देते हुए कई बार भारत का जिक्र किया था| भारतीयों से उनका कहना था कि वह इस विश्व युद्ध का फायदा उठाएं ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ खड़े हो जाए और भारतीय खुद के लिए भारत की स्थापना करें | लेकिन दोस्तों वह कहावत आपने सुना ही होगा होगी इतिहास वो लिखते हैं जो जिंदा बचते हैं और आधुनिक भारत के इतिहास साथ भी ऐसा ही हुआ 1947 में सत्ता का हस्तांतरण अंग्रेजों से भारतीय कांग्रेस पार्टी के पास चला गया था और उसके बाद कांग्रेस इतिहासकारों ने यह धारणा फैलाई कि भारत को आजादी गांधीजी की अहिंसा वादी आंदोलनों से ही मिली है | असल में सच्चाई यह है कि ना हिटलर होता ना , द्वितीय विश्वयुद्ध होता और ना ही कोई आजादी होती|
गांधीजी के तरीकों से आजादी मिल तो जाती लेकिन इस प्रक्रिया में 30 साल और लग जाते हैं और अंग्रेज ऐसे ही हमारे देश को लूटते रहते | वास्तव में 1930 के दशक से ही गांधीजी की लोकप्रियता कम होती जा रही थी . 1920 के असहयोग आंदोलन के एकदम से वापस आने से गांधीजी के बाकी के आंदोलनों में लोगों में वैसा उत्साह नहीं दिखा. अंत में कांग्रेस और गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया “करो या मरो “ नारे के साथ. सुभाष चंद्र बोस ने यह प्रस्ताव 1938 में ही पेश कर दिया था क्योंकि उन्हें पता था कि यूरोप राजनैतिक असंतुलन से गुजर रहा था और युद्ध के बादल छाए हुए हैं और यही सही मौका है अंग्रेजों को खदेड़ने का | हालांकि अंग्रेजी हुकूमत ने लीडर्स को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया और कुछ ही महीनों में आंदोलन कमजोर पड़ गया और देखते ही देखते आंदोलन खत्म हो गया | लेकिन सुभाष चंद्र बोस फिर भी नहीं रुके और जापान की सहायता से लड़ाई को जारी रखा और बेशक से अप्रत्यक्ष रूप से ही सही अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर किया |
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उस समय ब्रिटिश इंडियन आर्मी में बगावत के सुर उठने लगे थे. वास्तव में अंग्रेज भारत में स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए युद्ध में लड़ने के लिए भारतीय सैनिकों का ही इस्तेमाल करते थे. वफादार सिपाहियों के बिना इंग्लिश साम्राज्य का भारत पर राज्य करना मुश्किल हो गया था क्योंकि अंग्रेजों के पास इतने इंग्लिश सैनिक नहीं थे जिनकी मदद से वे राष्ट्रीय आंदोलन को दबा सके | इसी के चलते अंग्रेजों को लगने लगा था कि भारत में अब बड़े पैमाने पर अंग्रेज लोगों का कत्लेआम हो सकता है इसीलिए उन्होंने सत्ता हस्तांतरण में इतनी जल्दबाजी दिखाई| यह बेशक से द्वितीय विश्वयुद्ध का ही नतीजा था जिसने ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को तोड़कर रख दिया और द्वितीय विश्वयुद्ध बेशक से हिटलर की वजह से हुआ था|
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दोस्तों मेरे कहने का मतलब यह नहीं है कि सिर्फ हिटलर की वजह से ही भारत को आजादी मिली है. हां हिटलर ने भारत को आजादी दिलाने में बहुत ज्यादा सहयोग किया था लेकिन भारत में भी ऐसे बहुत सारे वीर जवान थे जिन्होंने अपना खून देकर भारत को आजादी दिलाई थी| आपको याद रखना चाहिए कि भारत को आजादी गांधी की वजह से नहीं मिली थी|
ऐ मेरे वतन के लोगों..
ज़रा आँख में भर लो पानी
जो शहीद हुए हैं उनकी..
ज़रा याद करो क़ुरबानी...
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