How much is the price of Rashtrapati Bhavan

राष्ट्रपति भवन की कीमत कितनी है! जानकर चौंक जायेंगे

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हेलो दोस्तों मेरा नाम अनिल पायल है, यदि आप Google से पूछोगे कि दुनिया का सबसे महंगा घर कौन सा है तो Google आप को एक सेकेंड से भी कम वक्त में भारतीय बिजनेसमैन मुकेश अंबानी के घर एंटीलिया का नाम देगा. लेकिन Google के द्वारा दिया गया यह जवाब पूर्ण रूप से सही नहीं है. क्योंकि यह सिर्फ किसी एक इंसान के निवास स्थान को दर्शाता है|

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How much is the price of Rashtrapati Bhavan

अगर निवास स्थान की बात हो तो चाहे वह किसी एक व्यक्ति का हो या फिर कोई रेजिडेंशियल| रेजिडेंशियल के तौर पर भारत की राजधानी दिल्ली में मौजूद प्रेसिडेंट हाउस यानी कि राष्ट्रपति भवन दुनिया का सबसे महंगा निवास स्थान है. मुकेश अंबानी के घर एंटीलिया की कीमत 6000 करोड रुपए है और अगर एंटिला के अंदर मौजूद सभी इंटीरियल डिजाइनिंग और सामान को मिलाए तो इसकी कीमत 13000 करोड रुपए हो जाती है. लेकिन दिल्ली में 330 एकड़ में बसे राष्ट्रपति भवन की जमीनी कीमत 26000 करोड रुपए है. इसमें इस जमीन के ऊपर मौजूद राष्ट्रपति भवन की कीमत अलग है.

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How much is the price of Rashtrapati Bhavan

यदि आप राष्ट्रपति भवन और उसमें मौजूद इंटीरियल को एक साथ मिला दें तो आप इसे कीमत का अनुमान भी नहीं लगा सकते. आपको जानकर हैरानी भी होगी और खुशी भी होगी कि भारत के राष्ट्रपति भवन की कीमत अमेरिका के राष्ट्रपति के आधिकारिक राष्ट्रपति निवास वाइट हाउस की कीमत से भी 14 गुना ज्यादा आंकी गई है. भारत का राष्ट्रपति भवन दिल्ली के बीचो-बीच केंद्र में बसा एक अपने आप में अलग ही नगर है. जिसमें खुद के हॉस्पिटल, बैंक, पोस्ट ऑफिस, टेनिस कोर्ट, थिएटर, लॉन्ड्री और आईटी जैसी सारे जरूरी चीजें राष्ट्रपति भवन में उपलब्ध हैं.

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भारत के राष्ट्रपति भवन में कुल 340 कमरे हैं, 18 सीढ़ियां हैं और 14 एलिवेटर लगाए गए हैं. 33 गैलरी और 74 बड़े यार्ड हैं और सारी इमारत को जोड़ने वाला ढाई किलोमीटर से भी ज्यादा बढ़ा फर्श है . यह घर भारत का नहीं बल्कि विश्व का सबसे बड़ा रहने लायक घर है. जिसके एक एक कमरे में अगर आपको घूमना हो तो आपका पूरा दिन लग जाएगा. विश्व के किसी भी राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री का निवास स्थान इतना बड़ा नहीं है. इसलिए भारत का राष्ट्रपति भवन इस मामले में एक वर्ल्ड रिकॉर्ड रखता है. इस महाकाय बिल्डिंग में अभी कुछ समय पहले भारत के 14वें राष्ट्रपति 5 साल के लिए रहने के लिए गए थे जो 340 कमरों में से महज पांच कमरे ही खुद के लिए उपयोग करते हैं और बाकी के कमरों का कोई खास उपयोग नहीं हो रहा है.

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अब आप सोच रहे होंगे कि इतने बड़े विशालकाय भवन को बनवाने की क्या जरूरत थी तो इसका जवाब हमें वर्तमान में नहीं भूतकाल में मिलेगा. अंग्रेजों के जमाने में भारत की राजधानी कोलकाता हुआ करती थी और अंग्रेज भारत की राजधानी भारत के बीचो-बीच कहीं और शिफ्ट करना चाहते थे. जिससे संचालन आसानी से हो सके और उस स्थान के लिए दिल्ली को चुना गया. उस वक्त कोलकाता में भारत के ज्यादातर अमीर लोग रहते थे लेकिन कोलकाता का ऐतिहासिक महत्व दिल्ली जितना नहीं था.

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दिल्ली भारत के मध्य में मौजूद है और कोलकाता की राजधानी बनने से पहले दिल्ली भारत की ऐतिहासिक राजधानी हुआ करती थी इसलिए दिल्ली को अंग्रेजों ने नई राजधानी चुना. तब लाल किले के चारों और मुगल काल का दिल्ली बसा हुआ था. मुगल साम्राज्य कब का खत्म हो चुका था अंग्रेज चाहते तो उस पुरानी दिल्ली को भारत की राजधानी बना सकते थे लेकिन अंग्रेजों को अपने लिए सेकंडहैंड राजधानी मंजूर नहीं थी और इसलिए उन्होंने अलग और एक आलीशान रहने लाएक महल बनाने के बारे में सोचा. जिसके चलते अंग्रेजो ने राष्ट्रपति भवन का निर्माण करवाया.

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राष्ट्रपति भवन बनाने का कॉन्ट्रैक्ट इंग्लैंड के मशहूर आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस को दिया गया. तब भारत का विभाजन नहीं हुआ था और 45 लाख 31 हजार स्क्वायर मीटर वाले इतने बड़े देश की राजधानी का आइकोनिक सिंबल राष्ट्रपति भवन बनाने का यह चांस लुटियंस के लिए किसी बड़े अचीवमेंट से कम नहीं था. 15 अप्रैल 1912 को लुटियंस इंग्लैंड से भारत आए और राष्ट्रपति भवन के निर्माण का कार्य शुरू हुआ. ब्रिटेन के चक्रवर्ती साम्राज्य का सबसे बड़ा क्षेत्र भी भारत ही था इसलिए भारत की राजधानी के राष्ट्रपति भवन का निर्माण देखने वाले को जीवन भर याद रहे इस प्रकार से बनाना था. जिसके लिए लुटियंस ने बहुत मेहनत की|

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वह भारत में अलग-अलग जगहों पर घुमे, कई तरह के पत्थरों का निरीक्षण किया. उसने गर्मी के मौसम में, ठंड के मौसम में और मौसम के हर उस बदलाव को देख कर कुछ चुनिंदा पत्थरों को राष्ट्रपति भवन के लिए नियुक्त किया. 5000 से भी ज्यादा लोग राष्ट्रपति भवन बनाने में लगा दिए गए. इनमें से 3000 लोग सिर्फ पत्थर काटने का काम करते थे. राष्ट्रपति भवन के निर्माण कार्य के शुरू होने के कुछ डेढ़ साल बाद ही 1914 में पहला विश्वयुद्ध शुरू हो गया जो 1918 तक चला और कुछ वक्त के लिए भवन के निर्माण कार्य को रोकना पड़ा. लेकिन पहला विश्व युद्ध खत्म होने के बाद फिर से इस भवन के निर्माण को शुरू कर दिया गया.

राष्ट्रपति भवन का निर्माण कार्य बहुत लंबे समय तक चला. राष्ट्रपति भवन कुल मिलाकर 17 साल बाद सन 1929 में बनकर तैयार हो गया. इस पूरे कार्य के लिए उस वक्त 11 लाख 53 हजार पाउंड का खर्च हुआ था. लुटियंस को राष्ट्रपति भवन निर्माण के लिए वैसे तो 10 परसेंट हिस्सा मिलना चाहिए था लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी जिस लुटियंस ने भवन के निर्माण के लिए अपने 17 साल दे दिए और इन सालों में वह इंग्लैंड से भारत और भारत से इंग्लैंड बहुत बार आते जाते रहे और पूरी मेहनत और ईमानदारी के साथ उन्होंने जो आलीशान निर्माण किया उस पूरे कार्य के लिए उसको महज 5000 पाउंड दिए गए.

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आपको अफसोस हुआ होगा की 17 सालों की मेहनत का सिर्फ 5000 पाउंड. यदि आप 5000 पाउंड को 17 सालों में मंथली डिवाइड करोगे तो उनकी सैलरी कुछ 25 पाउंड से भी कम हुई. इतनी कम मजदूरी मिलने के बावजूद भी लुटियंस को कोई अफसोस नहीं हुआ क्योंकि उनको इस बात की खुशी थी कि उन्होंने कड़ी मेहनत से एक आलीशान भवन का निर्माण किया है जो भविष्य में राष्ट्रपति भवन कहलाएगा.

1931 की तेज चांदनी रात को राष्ट्रपति भवन का ओपनिंग डे रखा गया. जहां पर बहुत बड़े भव्य उत्सव का आयोजन किया गया. इस उत्सव में देश-विदेश के कई बड़े मेहमान आए थे. वायसराय लॉर्ड इरविन ने यह महफिल सजाई थी. वायसराय लॉर्ड इरविन के साथ कई सारे अंग्रेज अफसर भी मौजूद थे इन सब में राष्ट्रपति भवन बनाने वाला इंजीनियर लुटियंस भी था लेकिन वह अकेला था. इरविन अपने अफसरों के साथ बातचीत में व्यस्त थे तभी लुटियंस भवन से बाहर निकल गया और अपने द्वारा बनाए गए भव्य इमारत को चूम कर वहां से विदा हो गया और किसी से बिना मिले ही लुटियंस हमेशा के लिए अपने देश इंग्लैंड चला गया.

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राष्ट्रपति भवन बनने के 16 साल बाद इस भव्य इमारत को स्वतंत्र भारत को सौंपने का दिन आ गया. 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों ने राष्ट्रपति भवन को हमेशा के लिए छोड़ दिया.

आजादी से पहले इस भगवान का नाम वॉइस रॉय हाउस था और आजादी के बाद इसका नाम बदलकर गवर्नमेंट हाउस कर दिया गया. अब इस भवन में गवर्नर जनरल रहने लगे थे. सबसे पहले लॉर्ड माउंटबेटन और उसके बाद राजगोपालाचारी वहां पर रहे आये. आजादी के लगभग 3 साल बाद इस भव्य भवन का नाम फिर से बदला गया और इस बार हमेशा के लिए इसका नाम राष्ट्रपति भवन रख दिया गया. जिसमें भारत के सबसे पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद 26 जनवरी 1950 के दिन रहने के लिए आए थे और इतने बड़े भवन के ठाठ बाट को देखकर सीधे-साधे राष्ट्रपति को बहुत आश्चर्य हुआ.

पूरी दुनिया में राष्ट्रपति भवन जैसी कोई दूसरी इमारत नहीं है. आज राष्ट्रपति भवन में 750 से भी ज्यादा लोग काम करते हैं. हमारे राष्ट्रपति भवन में बहुत सारे उपहार संग्रहालय भी हैं, जिसमें बहुत सारी कीमती वस्तुएं रखी गई हैं. उनमें से एक 640 किलो की खुर्सी भी शामिल है जो की पूर्ण रूप से चांदी की है. इसके अलावा राष्ट्रपति भवन में बहुत सारे दुर्लभ भारतीय ग्रंथ और और बहुत सारी प्राचीन वस्तुएं हैं जो आज भारत की धरोहर हैं.

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हर शनिवार को सुबह 10:00 बजे राष्ट्रपति भवन में चेंज ऑफ गार्ड समारोह आयोजित किया जाता है जो आम जनता के लिए खुला होता है. इस समारोह को देखने के लिए आपको सिर्फ अपना पहचान पत्र साथ में रखना है.

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दोस्तों मैं उम्मीद करता हूं आपको यह जानकारी पसंद आई होगी और अपने भारतीय होने पर गर्व होगा. आप राष्ट्रपति भवन के बारे में क्या सोचते हैं हमें कमेंट में जरूर बताएं…