हज यानी मुस्लिमों की जिंदगी का बेहद जरूरी धार्मिक काम , इस्लाम के पांच सिद्धांतों में से एक| ऐसा माना जाता है कि अगर कोई मुस्लिम समर्थ है , तो उसे अपनी जिंदगी में एक बार हज यात्रा जरूर करनी चाहिए . हज यात्रा पूरी होती है काबा का तवाफ करके.. यानी काबा की परिक्रमा करके|
काबा की परिक्रमा
काबा पड़ता है सऊदी अरब के शहर मक्का में. जहां हर साल दुनिया भर के लाखों मुस्लिम हज यात्रा के लिए इकट्ठा होते हैं| हज यात्रा में 5 दिन का वक्त लगता है क्योंकि कई सारी रस्में होती हैं जिन्हें पूरा करना पड़ता है और इन्हीं रस्मो में से एक है कुर्बानी. हज यात्रा तभी पूरी मानी जाती है जब हज यात्री द्वारा कुर्बानी दी जाती है|
कुर्बानी की रस्म
हज यात्रा पर गया मुस्लिम कुर्बानी देता है हर हाजी यात्री को यह करना होता है . किसी एक जानवर की कुर्बानी देनी होती है | जिन की कुर्बानी दी जाती है उनमे भेड़ , बकरा और ऊंट शामिल होते हैं और जिस दिन यह काबा में कुर्बानी दी जाती है वह दिन होता है ईद उल अजहा यानी बकरी ईद का दिन|
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जानवरों की कुर्बानी
आंकड़े बताते हैं कि साल 2016 में करीब 15 लाख मुस्लिम हज यात्रा पर गए थे| इसका मतलब है कि पिछले साल 15 लाख जानवरों की कुर्बानी दी गई थी| सऊदी अरब के हज के निदेशक अब्दुल मजीद मोहम्मद अल अफगानी ने मीडिया को बताया है कि इस साल लगभग 25 लाख मुस्लिमों के काबा पहुंचने की संभावना है यानी इसका मतलब यही हुआ कि इस साल 25 लाख जानवरों की कुर्बानी दी जाएगी|
कुर्बानी के बाद आखिर जानवरों का मांस जाता कहां हैं
25 लाख जानवर बहुत बड़ा आंकड़ा है. जाहिर सी बात है कि अगर इतने जानवर काटे जाएंगे , तो यह सवाल उठता है कि उनका मीट कहां जाएगा , उनका खून कहां जाएगा … अगर इतने जानवर एक ही जगह पर एक साथ काटे जाते हैं कुछ ही दिनों के अंतराल में तो जाहिर सी बात है कि उस जगह पर खून ही खून, मास ही मास दिखेगा | वैसे शरीयत का नियम यह कहता है कि हज पर जो हाजी गया है वह जिस जानवर को काटता है जिसकी कुर्बानी देता है उसका एक हिस्सा खुद खा सकता है और बाकी के दो हिस्से उसे गरीब लोगों में बांट देना होता है , जो उनके खाने के काम आता है | लेकिन जब एक ही जगह पर इतने जानवर काटे जाएंगे तो एक हिस्सा ना तो हाजी खुद खा पाएगा और ना ही बचे हुए दो हिस्से बाँट सकता है. वहां पर इतने गरीब भी नहीं होंगे और अगर होंगे भी तो वह भी एक साथ इतना ज्यादा मीट नहीं खा पाएंगे |
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तो यहां पर सवाल उठता है कि इन जानवरों का होता क्या है… ऐसे में सऊदी अरब में जब तक कोई खास इंतजाम नहीं किया गया था तब तक मीट इधर उधर बिखरा पड़ा रहता था| दशकों पहले जब मशीनें नहीं हुआ करती थी . तब लोग इन जानवरों को दफन कर देते थे | सऊदी अरब में जिस समय हज यात्रा हो रही होती है उस समय तापमान करीब 40 डिग्री सेल्सियस से भी ऊपर होता है. ऐसे में इन जानवरों को लंबे समय तक रख पाना उनका रखरखाव भी काफी मुश्किल होता है . लेकिन अब सऊदी अरब की सरकार ने कई ऐसे इंतजाम कर दिए हैं जिनसे इन जानवरों का मांस सुरक्षित रख लिया जाता है.
यूटिलाइजेशन ऑफ़ मीट प्रोजेक्ट
36 साल पहले सऊदी अरब की सरकार ने एक प्रोजेक्ट शुरू किया था. इस प्रोजेक्ट का नाम था यूटिलाइजेशन ऑफ़ हज मीट था | इसके तहत कुर्बानी के मांस को उन देशों में भेज दिया जाएगा जहां पर भारी तादाद में गरीब मुस्लिम रहते हैं. आंकड़ों की बात करें तो साल 2012 में कुर्बानी के बाद करीब करीब 1000000 जानवर दुनिया के 24 अलग-अलग देशों में भेजे गए थे| साल 2013 में यह मीट 28 देशों में भेजे गए थे . जिनमें सबसे बड़ा हिस्सा सीरिया गया था |
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इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक
अब सऊदी अरब में कुर्बानी के लिए इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक तैयार कर लिया गया है. जहां से कूपन लेकर मुस्लिम जानवरों की कुर्बानी करवा सकते हैं. इसका मक्का के पास एक बूचड़खाना भी है जहां पर जानवरों की कुर्बानी दी जाती है | फंडा सिंपल सा है आपको कूपन लेना है, कूपन ले कर आपको आगे बढ़ जाना है कूपन के आधार पर जो जानवर आपने चुना है उसका पैसा आपको जमा करना पड़ता है| जाहिर सी बात है ऊंट , भेड़ , बकरी इन सब की कीमत अलग-अलग होती है | पैसे जमा करने के बाद आपको आगे भेज दिया जाता है . आप दूसरे प्रोसेस में लग जाते हैं और जब आपके जानवर की कुर्बानी होती है तब टेक्स्ट मैसेज के जरिए हाजियों को बता दिया जाता है की कुर्बानी हो गई है | इससे ना तो गंदगी होती है ना ही खून फैलता है और सारा सिस्टम भी बना रहता है. वहीं से यह तय हो जाता है कि कितना मांस कहां पर आना है और उसका रखरखाव भी अच्छी तरह हो जाता है |
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जानवरों का इंपोर्ट
अब सवाल यह उठता है कि सऊदी अरब में जब हर साल एक ही महीने में या एक तयशुदा वक्त में इतने जानवरों की कुर्बानी दी जाती है तो वह आते कहां से हैं … उन्हें इंपोर्ट किया जाता है | सबसे ज्यादा जानवर आते हैं सोमालीलैंड से जिस की तादात करीब 1000000 की होती है | सोमालीलैंड के अधिकतर लोग पशुपालन का ही काम करते हैं . लेकिन अब सूडान और ऑस्ट्रेलिया ने भी इस मामले में सोमालीलैंड को कड़ी टक्कर देने लगे हैं | इसके अलावा उरुग्वे और पाकिस्तान जैसे देशों से भी एक्सपोर्ट किए जाते हैं|
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Source: The lallantop